काजल की कोठरी से अब हम गुजर आये हैं
कालक लगा लेते हैं और कलंक लगा लाये हैं
इल्जाम उठा लाते हैं और दाग भी ले आयें हैं
कलुषित इस मन से हम राह भटक जाएँ हैं
कोरे इस कागज से हम निर्मलता खो आये हैं
बड़े ही जन्म गुजरें हैं तुमसे मिलने आये हैं
शरीर तुम्हारा दिया, रूह में हमारी हो तुम
धर्मों के मालिक हो तुम, कर्मों के दाते हो तुम
मात-पिता, भाई-बन्धु, सब में समाते हो तुम
कभी मेरे पुत्र, कभी पुत्री बन जाते हो तुम
जगत के पति हो, मेरे साथी बन जाते हो तुम
मुझे सब दिया है तुमने, मेरे इक सहारे हो तुम
जामे में मानवता के कुछ दान कर जाऊँ मैं
देखूँ निकट जो अपने आप को ही पाऊँ मैं
क्या है जो दान मैं जो दुनिया को दे पाऊँगी
मेरा है बोलो क्या जो मैं अर्पण कर पाऊँगी
माटी से जन्मी पुतली, माटी में मिल जाऊँगी
रूह को कलम जो दे दो, नाम लिख जाऊँगी
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