गुरूजी को मेरी स्तुति

गुरूजी को मेरी स्तुति   


गुरूजी अमृत की खान हैं
मोहे अमृत दियो पिलाये
अमृत रस को चाख कर
अब दुनिया रास ना आये
आपकी भक्ति ऐसी मीठी
कोई देवी - देव ना भाये
निद्रा में भी गुरूजी हमको
आप ही के सपने आयें

आपसे मिलने की आस है
मन में दर्शन की प्यास है
हमको अपने चरण बिठाओ
हमको ब्रह्मज्ञान दिलाओ
भक्ति, भाव् और प्रेम से
जब आँख से आँसू आये
हमरे गुरुवर प्रकट हो गए  
और अपने दरस दिखलाये  

गुरूजी ने हमको दिखलाया
गुरू नानक प्यारो का स्वरुप
धन्य-धन्य हुई जाएँ अँखियाँ
धन्य - धन्य  हुई   जाएँ
कितने मनोहारी, कितने परोपकारी
सारे  जग के हैं ये पालनहारी
पावन हो गयी मोरी धरती
जीवित हुए  सभी  संसारी
हमरे  गुरूजी  ऐसे  अनूप
हमरे गुरूजी  ने हर ली  है
कलयुग की यह सारी  धूप
गुरूजी हैं तीन  लोक  के भूप
गुरूजी  में हैं भेद - अभेद
गुरूजी  हैं  देवन  के  देव

गुरूजी में समकर  रह गई है
प्रकृति  की  हर शह निराली
ऐसे गुरूजी को पल-छिन ध्यायो
ऐसे गुरूजी  को  लो माथा टेक
गुरूजी के बिन कब हैं चलते हैं
इस दुनिया  के  कारज अनेक
सारे  जग  के  पालनहारी को
यह मेरी स्तुति, यह मेरी  टेक

जय गुरूजी

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