Thursday, 9 August 2012

मैं गुरूजी की गुडिया


गुरूजी आप  प्यार  से  भी  प्यारे  हैं 
हमसे  पूछिए    क्या  आप  हमारे  हैं 
कभी समझाते  कभी  बतलाते 
सबको  अपने  पास  हैं बुलाते 
कितने बेजान  खाली  चित्रों  में  
कूची फेर  जीवन के रंग  भर  जाते  
कभी  सरस्वती , कभी  लक्ष्मी 
कभी  प्रियवर   बनकर   जाते 
कभी  जीवित , कभी  जीवन  मुक्त 
हमें  सब  ही  से  भिन्न  बनाते  
परम  पुरुष  हैं  आप  सदा  शिव  
गुरूजी  मेरे  का  वेश  धर  आते  
पृष्ठ -पृष्ठ,   हर  पृष्ठ  है  कोरा 
हमारे  खाली जीवन  में  आकर    
अपने जीवन का नया पृष्ठ लगाते 
हमारे व्यक्तित्व को परिपूर्ण कर जाते 

गुरुजी मेहरबान  हैं, मेहरें हैं आपकी 
तोड़ेंगे आप तो  टूट जायेंगे  
जोड़ेंगे  तो  जुड़  जायेंगे  हम 
हम  तो  गुड़ियाँ  हैं  आपकी 
हँसाओगे  तो  हंस देंगे   
रुलाओगे  तो  रो  देंगे  हम 
रूठ जायेंगे तो मनाएंगे हम
जीवन मरण की डगर कठिन है 
जीवन मुक्ता भी नहीं  सरल है
आपसे यहाँ कहीं ना मिलन है 
यह जीवन काजल की इक कोठरी  
दिव्यता, रोशनी  दिला दीजिये 
मेरा मन है सरोवर एक ठहरा हुआ
मुझपर बस इतनी कृपा कीजिये   
मुझे अपनी  चरनी  लगा  लीजिये 


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