जब अनगिनत नए कई सवाल उमड़ आते हैं
सवालों के इस अथाह समंदर में खोई-खोई
मैं उत्सुकता और हैरानी मन में लेकर
आपसे मिलने की तरजीह करती हूँ
मनन और चिंतन में खोयी रहती हूँ
आप की दस्तक कई कई बार होती है
गुरूजी, आप से मिल जाएँ हल मुझे सारे ,
क्या यह हो सकता है ????
अपनी बातों में उलझे से हम क्यों हैं ???
हद से बेहद हो जाते हमारे गुरूर क्यों हैं ???
इंसान से दूर, जानवर से प्रबल क्यों हैं ???
टूटे हुए, थके से पथिक हम क्यों हैं ???
आपके चरणों से हम जुदा क्यों हैं ???
हर श्वास से निकलने को तड़पती है आत्मा जबरन ,
फिर इस पिंजड़े में हम कैद और नज़रबंद क्यों हैं ???
अपने से कम नहीं दूर, फिर आप से जुदा क्यों हैं ???
कब के मिलते -मिलते, कब के बिछड़े हम क्यों हैं ???
फिर भी हर धड़कन में महसूस आप हमको क्यों हैं ???
याद हर बार करते हैं लेकिन आपको पाते हम क्यों नहीं हैं ???
आप हैं हमारे तो यह जिस्म आपसे अलग क्यों हैं ???
आपके साए में आतिश और महफूज़ हैं लेकिन
बदसूरत , बेनाम हमारे यह अक्स दिखते क्यों हैं ???
जैसे हम जल को शुद्ध करते हैं
क्या आप भी हमें सिद्ध करते हैं ???
इल्म है हमको और यह ज्ञान भी है ,
आप से दूर और हम कुछ भी तो नहीं,
काश हम हर बार आपको ही पायें,
मार्गदर्शक बन जाएँ हमारे, आपके साए,
आपकी याद कभी मद्धम, ऑंखें नम ना होने पाएं,
हम भूले से कभी भुलाने का सबब नहीं देंगे,
आप जान हमारे , प्रेम कभी कम नहीं होने देंगे,
आपको हर सांस और धड़कन में धारण कर लें,
आपको कह दें अपनी बातें हम सुकून कर लें…..
जय गुरूजी
No comments:
Post a Comment