गुरूजी की अर्चना


मेरे मन में प्रभु है आपकी ही अर्चना
इस तन को पवित्र थाली है मैंने किया  
और आत्मा का सजाया है मैंने दिया
मैंने आपको बहुत भक्ति-प्रेम है दिया
इस तरह बड़े भाव से मैंने आरती के
दिव्य दीपक को प्रज्वल्लित है किया

जिह्वा से मैंने आपका नाम है लिया
पुष्प नयनों का मैंने है अर्पित किया
और श्वासों को मैंने है माला में सिया
बड़े मन से ‘मैं’ को समर्पित है किया
इस तरह मैंने आपको समर्पण है किया
मैंने आपका प्रेम से सुमिरन है किया

मेरे मन में प्रभु है आपकी ही अर्चना
आपको शीश, मुख और दंभ है दिया
फिर आपकी दिव्य ज्योति ने मुझको
अपना दिव्य सुनहरी प्रकाश है दिया
इस तरह मैंने मन का समर्पण किया
अपना तन, मन, धन भी समर्पित किया 

सर पे पीली चुनर की ओढ़नी ओढ़कर 
दृष्टी से मैंने आपका दर्शन है लिया
मैंने करबद्ध नतमस्तक अनुरोध है किया
आपने मेरी अर्चना को स्वीकार है किया

चहूँ दिशायों में ध्वनि अशंख्य शंखों की है
नादों के स्वरों ने आपका स्वागत है किया
इस तरह मैंने करबद्ध हाथों से मेरे गुरूजी
आपको अपना गुरुजी स्वीकार है किया 

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